भोपाल में यूनियन कार्बाइड हादसे के पीड़ितों ने उनके अस्पतालों में पुराने मरीजों के इलाज के लिए योग विधि द्वारा इलाज शुरू करने की माँग की। एक परित्यक्त योग केंद्र के सामने योग के विभिन्न मुद्राओं में पीड़ितों जिसमें से कई पुराने मरीज थे, ने राज्य सरकार द्वारा योग के नाम पर करोड़ों की बर्बादी की तरफ ध्यान खींचा।
पीड़ितों के इस कार्यक्रम की अगुवाई करने वाले पाँच स्थानीय संगठन जो लम्बे अरसे से पुरानी बीमारियों से ग्रस्त गैस पीड़ितों के सही इलाज के लिए लड़ रहे हैं । लाक्षणिक दवाओं के कुप्रभावों से बचाव के लिए यह संगठन दिसंबर 84 में ज़हरीले गैस से प्रभावित 5 लाख से अधिक लोगों के लिए बने 6 अस्पतालों में योग विधि द्वारा इलाज करने की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।
“गैस राहत अस्पतालों में योग से इलाज शुरू करवाने के लिए फरवरी 2007 में हमें 19 दिन के लिए अनशन करना पड़ा और वो शुरु भी किया गया तो सिर्फ 2 अस्पतालों में और वो भी पार्टटाईम,” कहा भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने।
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव के अनुसार योग से इलाज शुरू होने के 2 साल में 2000 से ज्यादा गैस पीड़ितों ने साँस की तकलीफ, जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, माहवारी की गड़बड़ियाँ और अनिद्रा जैसी पुरानी तकलीफों में आराम होना बताया। इन तकलीफों के लिए पहले उन्हें स्टेरॉयड, दर्दनाशक और दिमाग पर असर करने वाली दवाएँ लेनी पड़ती थी जिनके कई दुष्प्रभाव हैं। इसके बावजूद, उन्होंने कहा कि 2009 में भाजपा की सरकार ने मनमानी तौर पर गैस राहत अस्प्तालों में योग द्वारा इलाज बंद कर दिया।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खां ने कहा कि उनके द्वारा सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ यह दर्शाते हैं कि अस्पतालों में योग बंद करने का निर्णय वहाँ के अधीक्षकों के ऐसे मतों के आधार पर थे जो सिर्फ़ उनके चिकित्सीय तथ्यों के बारे में अज्ञानता और पीड़ितों के इलाज के प्रति लापरवाही है। “सभी अधीक्षकों ने वही हास्यास्पद दावे किए कि दवाओं के कोई कुप्रभाव नहीं होते और योग से गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य को कोई फायदा नहीं पहुँचता” उन्होने कहा।
योग के बारे में राज्य सरकार की उदासीनता का ताज़ा सबूत यह है कि गैस पीड़ितों में योग को बढ़ावा देने के लिए बने 7 में से 6 केन्द्रों का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है। करीब 4 करोड़ की लागत से बने यह केंद्र पिछले 6 महीनों से बंद पड़े हैं। इनमें से एक योग केंद्र को शादी हॉल के रूप में किराए पर दिया जाता है, कहती है डाव कार्बाइड के खिलाफ बच्चे की संस्थापिका साफ़रीन ख़ान।
भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षडंगी कहते हैं राज्य सरकार का योग को लेकर सारा होहल्ला दिखावा भर है। इनके मंत्री और अधिकारी दवाओं की खरीदी और योग केन्द्रों के निर्माण से कमीशन खाने में ही इतने व्यस्त है कि उन्हें दुनिया के भीषणतम औद्योगिक हादसे के पीड़ितों को योग से फ़ायदा पहुंचाने के लिए कोई फ़िक्र नहीं है।
रशीदा बीभोपाल गैस पीड़ित स्टेशनरी कर्मचारी संध | बालकृष्ण नामदेवभोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा | नवाब खांभोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा | रचना ढींगरा, सतीनाथ षडंगीभोपाल ग्रुप फॉर इन्फार्मेशन एंड एक्शन | साफरीन खांडाव-कार्बाइड के खिलाफ बच्चे |
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